आइए हम आपको पंडित दीनदयाल के बारे में सब कुछ बताने वाले हैं कि उनके परिवार में कौन कौन था उन्होंने क्या लिखा उनके बारे में सब कुछ मुगलसराय का नाम क्यों बदला गया सब कुछ हम आपको बताने वाले हैं इस आर्टिकल में अगर आपको कोई त्रुटि लगे तो आप हमें उस टूटी के साथ स्क्रीनशॉट लेकर के नीचे कमेंट बॉक्स में कर सकते हैं या फिर कांटेक्ट पेज पर जाकर हमें अपनी गलतियों का आभास करा सकते हैं जितनी जल्दी हो सके हम उसे बदलने की कोशिश करें


पंडित दीनदयाल उपाध्याय के बारे में

दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 इसवी को उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले में नालंगा चंद्रभान ग्राम में हुआ था अब इस ग्राम को पंडित दीनदयाल उपाध्याय धाम नाम से जाना जाता है इनके परदादा का नाम पंडित हरिराम उपाध्याय था जो एक प्रख्यात ज्योतिषी थे

 इनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय तथा मां का नाम रामप्यारी था इनके पिता जलेसर में सहायक स्टेशन मास्टर के रूप में कार्यरत है और मां बहुत धार्मिक विचारधारा वाली महिला टीम के छोटे भाई का नाम शिव दयाल उपाध्याय था दुर्भाग्यवश मात्र ढाई वर्ष के ही थे तभी इनके पिता का असामयिक निधन हो गया इसके बाद उनका परिवार राजस्थान राज्य के जयपुर जिले के ग्राम धन किया में इनके नाना के साथ रहने लगा यहां परिवार दुखों से उबरने का प्रयास ही कर रहा था की तपेदिक रोग से इलाज के दौरान इनकी मां दूध छोटे बच्चों को छोड़ कर संसार से चली गई जब यह 10 वर्ष के थे तभी इनके नाना का भी निधन हो गया मामा ने इनका पालन-पोषण अपने बस नाकिया छोटी अवस्था में ही अपना ध्यान रखने के साथ-साथ अपने छोटे भाई के अभिभावक का दायित्व भी निभाया परंतु दुर्भाग्य से भाई को चेचक की बीमारी हो गई और 18 नवंबर 1934 इस भी को उसका निधन हो गया दीनदयाल जी के कम उम्र में ही उनके अनेक उतार-चढ़ाव दे देखा परंतु अपने दृढ़ निश्चय से जिंदगी में आगे बढ़े इन्होंने सीकर से हाइकु स्कूल की परीक्षा पास की जन्म से बुद्धिमान और प्रतिभाशाली दीनदयाल को स्कूल और कॉलेज में अध्ययन के दौरान कई स्वर्ण पदक और प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुए इन्होंने अपने स्कूल की शिक्षा बिरला कॉलेज गिलानी और स्थानक की शिक्षा कानपुर विश्वविद्यालय के सनातन धर्म कालेज से पूरी की इसके पश्चात उन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा पास की लेकिन आम जनता की सेवा के लिए इस नौकरी का इन्होंने परित्याग कर दिया दीनदयाल उपाध्याय अपने जीवन के प्रारंभिक वर्षों से ही समाज सेवा के प्रति पूर्णतया समर्पित है

वर्ष 1937 मैं अपने कॉलेज के दिनों में कानपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आर एस एस के साथ जुड़े वहां उन्होंने आर एस एस के संस्थापक डॉ हेडगेवार से बातचीत की और संगठन के प्रति पूरी तरह से अपने आप को समर्पित कर दिया वर्ष 1942 में कालेज की शिक्षा पूर्ण करने के बाद उन्होंने न तो नौकरी किया और ना ही विवाह किया बल्कि संघ की शिक्षा का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए आर एस एस के 40 दिवसीय शिविर में भाग लेने नागपुर चले गए डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा सन 1951 में स्थापित किए गए भारतीय जनसंघ का इन्हें प्रथम महासचिव नियुक्त किया गया यह लगातार 1967 ईस्वी तक जन संघ के महासचिव बने रहे इनके कार्य क्षमता खुफिया गतिविधियों और परिपूर्णता के गुणों से प्रभावित होकर डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी कहते थे कि यदि मेरे पास 2 दिन दयाल हो तो मैं भारत का राजनीतिक चेहरा बदल सकता हूं परंतु सन 1953 में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के असमय निधन से पूरे संगठन की जिम्मेदारी दीनदयाल उपाध्याय के युवा कंधों पर आ गई भारतीय जनसंघ के 14 में वार्षिक अधिवेशन में दीनदयाल उपाध्याय को दिसंबर 1967 में कालीकट में जन संघ का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया 11 फरवरी 1968 ईस्वी को इनका देहावसान हो गया कहा जाता है कि मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर इनकी पाया गया था दीनदयाल उपाध्याय एक चर्चित पत्रकार भी थे

 उपाध्याय के अंदर की पत्रकारिता तब इन्होंने लखनऊ से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका में वर्ष 1940 के दशक में कार्य किया के कार्यकाल के दौरान इन्होंने एक साप्ताहिक समाचार पत्र और एक दैनिक समाचार स्वदेश का संपादन भी किया था इन्होंने नाटक चंद्रगुप्त मौर्य और हिंदी में शंकराचार्य की जीवनी लिखिए इन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हेडगेवार की जीवनी का मराठी में हिंदी में अनुवाद किया साहित्य में सम्राट चंद्रगुप्त जगतगुरु शंकराचार्य अखंड भारत के राष्ट्र जीवन की समस्याएं राष्ट्र चिंतन और राष्ट्र जीवन की समस्याएं इत्यादि है.

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